JPSC MAINS NOTES पेपर 4 लोक प्रशासन और सुशासन टॉपिक ( पूर्ण केन्द्रीयकरण और विकेन्द्रीयकरण व्यवहार में संभव नहीं ) Q&A हिंदी में फ्री पीडीएफ डाउनलोड

 

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झारखण्ड लोक सेवा आयोग (JHARKHAND PUBLIC SERVICE COMMISSION (JPSC)




प्रश्न :"पूर्ण केन्द्रीयकरण और विकेन्द्रीयकरण व्यवहार में संभव नहीं है।" इस कथन का व्याख्या कीजिए ?


उत्तर- किसी भी संगठन की संरचना इस बात पर निर्भर करती है कि उसे केन्द्रीकृत बनाया जाये अथवा उसका विकेन्द्रीकरण किया जाये । केन्द्रीकरण और विकेन्द्रीकरण का सार निर्णय की शक्ति वितरण में निहित है। किसी संगठन में निर्णय के जितने कम केन्द्र होते हैं, वह संगठन उतना ही केन्द्रित माना जाता है।

इसके विपरीत, यदि संगठन में निर्णय के केन्द्र अधिक होते हैं तो वह विकेन्द्रीत माना जाता है। जब संगठन का आकार बड़ा हो जाता है और गतिविधियाँ अत्यन्त जटिल हो जाती है तो उसके सामने यह समस्या आती है कि वह संगठन में केन्द्रीकरण को अपनाये अथवा विकेन्द्रीकरण को। सरकार के समक्ष भी आज मुख्यतः यही समस्या है कि केन्द्रीकरण किया जाये अथवा विकेन्द्रीकरण । 

एक ओर नियोजित अर्थव्यवस्था एवं सशक्त व प्रभावशाली प्रतिरक्षा तथा राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता केन्द्रीकरण पर बल देती है तो दूसरी ओर सामान्य जनसहयोग से लोकतंत्र की स्थापना का आश्वासन एवं क्षेत्रीय स्वायत्तता की बढ़ती हुई माँग-विकेन्द्रीकरण की माँग करती है। भारत में योजना आयोग केन्द्रीकरण का प्रतीक था  और पंचायत राज विकेन्द्रीकरण की प्रवृत्ति का । कुछ विद्वानों ने दोनों को इस प्रकार परिभाषित किया है- ह्वाइट के अनुसार 'प्रशासन में निम्न तल से उच्च तल को ओर प्रशासकीय सत्ता के हस्तांतरण की प्रक्रिया को केन्द्रीकरण कहते हैं तथा इसके विपरीत व्यवस्था विकेन्द्रीकरण कहलाती है|’

फायोल का मानना है कि “जिससे अधीनस्थों के महत्व में वृद्धि हो, वह विकेन्द्रीकरण होता है तथा जो अधीनस्थों के महत्त्व को घटाये वह केन्द्रीकरण कहलाता है। "

केन्द्रीयकरण में सम्पूर्ण शक्ति केन्द्र में निहित होती है । निम्नस्तरीय बिन्दुओं पर केवल संचालन की देख-रेख का काम होता है, नियंत्रण या निराकरण उनकी सीमा से

बाहर होता है। इसमें निर्णय लेने का सम्पूर्ण अधिकार केन्द्रीय सत्ता के हाथ में होता है ।

 इसके परिणामस्वरूप निम्नतर शासकीय स्तरों के कर्मचारियों की शक्ति और विवेक में कमी होती है। केन्द्रीयकरण की प्रवृत्ति समाजवादी व्यवस्था में अधिकांश: देखी जाती है।

आर्थिक नियोजन, प्रतिरक्षा तथा राष्ट्रीय एकीकरण केन्द्रीयकरण की माँग करती है। किसी भी संगठन में उत्तरदायित्व का तत्व केन्द्रीयकरण का समर्थन करता है। नये स्थापित संगठन केन्द्रीयकरण के द्वारा ही स्थायित्व पाते हैं और यदि संगठन में कर्मचारी दक्ष नहीं है तो नीतियों को सफल रूप से क्रियान्वित करने के लिए केन्द्रीयकरण उपयुक्त होता है ।

समय में यातायात के साधनों में वृद्धि के कारण केन्द्रीयकरण की ओर आकर्षण बढ़ा है। यह व्यवस्था प्रशासन के सभी भागों पर प्रभावकारी बनी रहती है । अतः कार्यकुशलता के साथ केन्द्रीयकरण कुछ दोषों से भी युक्त होता है जिसके कारण आधुनिक युग में प्रशासन में विकेन्द्रीयकरण का सिद्धान्त जोर पकड़ता जा रहा है।

अधिक केन्द्रीकृत प्रशासन निर्णयन में देरी व गलत निर्णयन का कारण बनता है और इसमें स्थानीय निकायों की उपेक्षा होती है । फलतः प्रशासन में विकेन्द्रीयकरण को अपनाया जा रहा है |

विकेन्द्रीयकरण में शक्ति का केन्द्र टूट जाता है और केन्द्रीय सत्ता अपनी शक्तियों का बँटवारा स्थानीय निकायों में भी करती है। इसमें निम्न स्तर अपनी सत्ता का प्रयोग पूरी स्वायत्तता से करते हैं। ऐसी व्यवस्था मिश्रित व्यवस्थाओं में अपनायी जाती है। विकेन्द्रीयकरण के तहत सौंपी गयी शक्तियों के प्रयोग में स्थानीय निकाय अपने स्वविवेक का प्रयोग करते हैं और उस क्षेत्र में किये गये कार्यों का उत्तरदायित्व पूरी तरह उनके कंधों पर होता है ।

पुराने प्रकार के संगठनों में विकेन्द्रीकरण को आसानी से लाया जा सकता है। जब संगठन पूरी कार्यकुशलता से कार्य कर रहा होता है तो उसमें विकेन्द्रीकृत व्यवस्था सुगम हो जाती है | 

जब संगठन में विभागीय कार्य बहुमुखी प्रकृति के हो और तकनीकी हो तो वहाँ विकेन्द्रीयकरण एक अनिवार्य जरूरत बन जाती है । इसके अलावा विकेन्द्रीकृत प्रशासन में कठोरता का अभाव और लचीलेपन एवं उदारता का समावेश होता है जिससे प्रशासन लोकप्रिय होता है। विकेन्द्रीयकरण को सामान्यतः जटिलता और विस्तार के सीमित पैमाने पर सांगठनिक कार्यकुशलता के रूप में देखा जाता है जबकि यह कार्यात्मकता से कुछ अधिक है। 

विकेन्द्रीयकरण के दो रूप हैं- राजनीतिक और प्रशासकीय रूप |

राजनीतिक विकेन्द्रीयकरण में शासन में नवीन तलों की स्थापना की जाती है जबकि विकेन्द्रीयकरण का प्रशासकीय पहलू प्रशासन को जनता के साथ संयुक्त करता है। यह राजनीतिक और प्रशासकीय सत्ता के विघटन से ही संभव है।

प्रशासकीय विकेन्द्रीयकरण उर्ध्वाधर, क्षैतिज, क्षेत्रीय और कार्यात्मक होते हैं। विकेन्द्रीकरण में सत्ता के कार्यों तथा उत्तरदायित्वों को विघटित करने से भार से दबी केन्द्रीय सत्ता को राहत मिलती है साथ ही स्थानीय संस्थाएँ मजबूत बनती हैं। जो व्यक्ति प्रशासकीय कार्यक्रमों व कार्यों से प्रत्यक्ष प्रभावित होते हैं उन्हें प्रशासन से घनिष्ठ रूप से जुड़ने में अनुकूलता होती है। 

सत्ता के विकेन्द्रीयकरण से तुरंत कार्रवाई को प्रोत्साहन मिलता है तथा विलम्ब एवं लालफीताशाही कम हो जाती है।अधीनस्थ कर्मचारियों को अपने साधन व आत्मविश्वास को बढ़ाने का अवसर मिलता है और वे अधिक-से-अधिक उत्तरदायित्व ग्रहण करते हैं। इस व्यवस्था में संगठन में सम्प्रेषण सरल व अविलम्ब होता है। चाल्सवर्थ के अनुसार "विकेन्द्रीयकरण में मात्र प्रशासकीय कुशलता के अतिरिक्त कुछ लाभ है क्योंकि इसमें नागरिक के व्यक्तिगत औचित्य की भावना के विकास पर सीधा प्रभाव पड़ता है।" 

किन्तु विकेन्द्रीयकरण सभी परिस्थितियों में बेहतर परिणाम नहीं देता है। इसे संगठन में एक सीमा तक ही लागू किया जा सकता है। इसको संगठन में लागू करने से समन्वय को लेकर समस्या आती है तथा एक समान राष्ट्रीय नीति के लागू होने में बाधा आती है। एक क्षेत्रीय कार्यालय राष्ट्रीय नीति से अलग अपनी निजी नीति को भी अपना सकता है जो अव्यवस्था का कारण बनती अत्यधिक विकेन्द्रीयकरण संगठन में अराजकता लाती है। 

केन्द्रीयकरण तथा विकेन्द्रीयकरण के संबंध में उपरोक्त विवेचन के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता है कि ये दोनों अवधारणाएँ एक दूसरे के विपरीत है अथवा दो ध्रुवीय विचार है। जिस प्रकार संतोष के विपरीत असंतोष तथा शुभ के विपरीत अशुभ नहीं होता है उसी प्रकार केन्द्रीयकरण के विपरीत विकेन्द्रीयकरण नहीं होता है। फेजलर के अनुसार केन्द्रीकरण तथा विकेन्द्रीकरण के निर्धारण में कुछ निर्धारक तत्त्वों का योगदान होता है जिनका अभाव या प्रभाव ही व्यवस्था को केन्द्रीकृत तथा विकेन्द्रीकृत बनाता है।

फेजलर के अनुसार कोई सेवा केन्द्रीयकरण की ओर उन्मुख हो रही है अथवा विकेन्द्रीकरण की ओर, इसका अनुमान संगठन में किये जाने वाले निर्णयगत मामलों की तुलना में, उन मामलों के महत्व का अवलोकन करके, जिन पर अधिकारियों को निर्णय देने की सत्ता प्राप्त है, मुख्यालय में उठने वाले और वहीं निर्णित होने वाले मामलों में क्षेत्रीय अधिकारियों के केन्द्र की परामर्श सीमा और ऐसे क्षेत्रीय अभिमत के महत्त्व की सीमा से लगाया जा सकता है।" 

इसी प्रकार केन्द्रीकरण व विकेन्द्रीयकरण को व्यवहार में लगभग समान प्रकृति का मानते हुए डेविड हूमैन कहते हैं किव्यवहार के कुछ-न-कुछ लक्षण अवश्य पाये जाते हैं।" इससे स्पष्ट है कि केन्द्रीकरण तथा विकेन्द्रीयकरण विपरीत प्रकृति के नहीं बल्कि मात्रात्मक अंतर के कारण भिन्न है |

 

 

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