jpsc मैन्स नोट्स फ्री पीडीएफ डाउनलोड (पेपर 4 ) Q&A टॉपिक भारत के संविधान की उद्देशिका

 



झारखण्ड लोक सेवा आयोग (JHARKHAND PUBLIC SERVICE COMMISSION (JPSC)



प्रश्न : भारत के संविधान की उद्देशिका में प्रतिष्ठित दर्शन के औचित्य महत्त्व का परीक्षण कीजिए ।

(Examine the relevane and significance of the philosophy enshrined in the preamble of the constitution of India.)


उत्तर- ब्रिटिश औपनिवेशिक पृष्ठभूमि द्वारा निर्मित समाजार्थिक ढाँचा एवं हमारी अपनी त्रुटियुक्त सामाजिक-सांस्कृतिक मान्यताओं के कारण जो विषमता और शोषण के व्यापक तत्त्व हमारे देश में मौजूद थे, उन्हें दूर करने के लिए संविधान निर्माताओं ने प्रस्तावना में एक संप्रभु समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना की घोषणा के साथ-साथ न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के दर्शनों का समावेश किया एवं इनसे संबंधित आवश्यक प्रावधान संविधान के विभिन्न भागों और अनुच्छेदों में किए गए ।

प्रस्तावना में तीन प्रकार के न्याय का उल्लेख है : सामाजिक न्याय, आर्थिक न्याय और राजनीतिक न्याय । 

सामाजिक न्याय से अभिप्राय है कि मानव-मानव के बीच में जाति,वर्ण, लिंग, धर्म, वंश के आधार पर भेद न माना जाय तथा प्रत्येक नागरिक को उन्नति के समुचित अवसर सुलभ हो । 

आर्थिक न्याय से अभिप्राय है कि उत्पादन एवं वितरण के साधनों का न्यायोचित वितरण हो और धन-सम्पदा का केवल कुछ ही हाथों में केन्द्रीयकरण न हो जाय।

राजनीतिक न्याय से अभिप्राय है कि राज्य के अंतर्गत समस्त नागरिकों को समान रूप से नागरिक और राजनीतिक अधिकार प्राप्त हों। 

इस प्रकार प्रस्तावना में उपबंधित न्याय के विचार से लोककल्याणकारी राज्य का विचार दृष्टिगोचर होता है और नागरिकों को अन्य क्षेत्रों में न्याय का आश्वासन भी दिया गया है। 

हमारे संविधान के अनुच्छेद 15,17, 23 और 38 का संबंध सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने से है। आर्थिक न्याय का तात्पर्य है आर्थिक आधार पर नागरिकों के मध्य भेदभाव को प्रतिबंधित करना । हमारे संविधान के अनुच्छेद 16 और 39 का संबंध आर्थिक न्याय से है।

 राजनीतिक न्याय का तात्पर्य है, देश की राजनीतिक प्रक्रिया में सभी नागरिकों की समरूप भागीदारी सुनिश्चित करना । सभी नागरिकों को वयस्क मताधिकार देकर राजनीतिक न्याय सुनिश्चित करने का प्रयस किया गया |

प्रस्तावना में विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता का उल्लेख है जिसे संविधान के अनुच्छेद 19 एवं 25-28 के माध्यम से सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है ।

समानता से अभिप्राय है कि अपने व्यक्तित्व के समुचित विकास के लिए प्रत्येक नागरिक को समान अवसर उपलब्ध हो । प्रस्तावना में प्रतिष्ठा और अवसर की समता का उल्लेख है । संविधान के अनुच्छेद 14-18 के माध्यम से समानता सुनिश्चित करने की कोशिश की गई है। 

सभी नागरिकों को कानून के समक्ष समानता और कानून का समान संरक्षण प्राप्त है । सार्वजनिक स्थानों में प्रवेश तथा लोकनियोजन के विषय में धर्म, मूलवंश जाति या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव को वर्जित किया गया है।

प्रस्तावना में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बंधुता यानी भाईचारा को विकसित करने का उल्लेख भी है। राष्ट्रीयता की भावना को मजबूत करने तथा अन्तर्राष्ट्रीय शांति व सद्भाव का वातावरण बनाने के लिए भाईचारा का दर्शन काफी प्रासंगिक है। इस संदर्भ में संविधान में अनुच्छेद 51, अनुच्छेद 51'A' का प्रावधान किया गया है ।

निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि प्रस्तावना में निहित दर्शन का तात्पर्य एक ऐसे लोककल्याणकारी राज्य की स्थापना है जिसमें सभी वर्गों की सर्वांगीण मुक्ति संभव हो ।

 

 

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