jpsc mains exam नोट्स फ्री पीडीएफ डाउनलोड पेपर पेपर 4 लोक प्रसाशन और शासन व्यवस्था टॉपिक (लोक प्रशासन की उत्पत्ति का सरकार के कार्यों में सुधार और महिला कल्याण )
झारखण्ड लोक सेवा आयोग (JHARKHAND PUBLIC SERVICE COMMISSION (JPSC)
सेलेबस पर आधारित क्वेश्चन आंसर राइटिंग ( syllabus based mains question answer writing )
"लोक प्रशासन की उत्पत्ति का सरकार के कार्यों में सुधार बौद्धिक प्रयत्नों के रूप में होने से इसके एक सामाजिक विज्ञान की तरह विकसित लाने हेतु होने पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।" विवेचना करें और इस विषय के तकनीकी-प्रबंधकीय एवं सामाजिक-दार्शनिक परिप्रेक्ष्यों की प्रमुख विशेषताओं का परीक्षण कीजिए ?
लोक प्रशासन का उद्भव कार्यकुशलता आन्दोलन की देन है। सरकार के कार्यों में कार्यकुशलता लाने के लिए सर्वप्रथम वुडरो विल्सन ने अपने लेख 'The study of Administration' में राजनीति तथा प्रशासन विभाजन की चर्चा की। उनका मानना था कि सरकार को अधिक व्यावसायिक होना चाहिए तथा संविधान बनाने की अपेक्षा उसको क्रियान्वित करने वाले पक्ष पर अधिक ध्यान देना चाहिए। इस विभाजन की दृढ़ अभिव्यक्ति 1900 में फ्रैंक जे. गुडनाऊ ने अपनी पुस्तक 'Politics & Administration' में की। तद्नुरूप कार्यकुशलता के लिए प्रशासनिक सिद्धान्तों का निर्माण कार्य कर शुरू हो गया और लोक प्रशासन प्रबंधशास्त्र की तरह विकसित होने लगा। कार्यकुशलता तथा मितव्ययिता जैसे उद्देश्यों ने लोक प्रशासन को तकनीकी परिप्रेक्ष्य प्रदान किया। किन्तु इससे सामाजिक, दार्शनिक परिप्रेक्ष्य की उपेक्षा हुई और लोक प्रशासन सामाजिक विज्ञान की अपेक्षा विज्ञान बन गया ।
अपने तकनीकी प्रबंधकीय परिप्रेक्ष्य में लोकप्रशासन का
अभिमुखन तथ्यों, सिद्धांतों, तार्किकता, बुद्धिवाद तथा
प्रत्यक्षवाद की तरफ है। इसके माध्यम से संसाधनों का अधिकतम दोहन, मितव्ययिता तथा अधिकतम
परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं।
किन्तु लोक प्रशासन की विषयवस्तु मानव और मानवीय समाज है। लोकप्रशासन मनुष्यों द्वारा,मनुष्यों के लिए, मनुष्यों पर किया जाता है। मनुष्य के कुछ मूल्य होते हैं, जैसे सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनैतिक धार्मिक आदि और सामाजिक विज्ञान का सरोकार इन्हीं मूल्यों से है। जहाँ तकनीकी प्रबंधकीय परिप्रेक्ष्य तथ्यों पर आधारित है, वहीं सामाजिक दार्शनिक परिप्रेक्ष्य मूल्यों पर आधारित है। तथ्य यथार्थ की अभिव्यक्ति है तथा मूल्य पसंद या इच्छा को अभिव्यक्त करता है।
अतः दोनों दृष्टिकोण अलग हो जाते हैं।तकनीकी प्रबंधकीय दृष्टिकोण ने कार्यकुशलता को लोकप्रशासन के साध्य के रूप में देखा है जबकि समाजविज्ञान के साथ ऐसा नहीं है। समाजविज्ञान का अभीष्ट वर्गरहित समाज की स्थापना,'बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय' तथा ' अधिकतम लोगों को अधिकतम कल्याण' सुनिश्चित करना है। समाजविज्ञान का यह साध्य लोकप्रशासन के तकनीकी-प्रबंधकीय परिप्रेक्ष्य की उत्पत्ति से जुड़े कार्यकुशलता आन्दोलन बौद्धिक प्रयत्न तथा वैज्ञानिक एवं प्रबंधकीय अभिमुखन ने लोक प्रशासन को एक सामाजिक विषय के रूप में विकसित होने में प्रतिकूल प्रभाव डाला है। लोक प्रशासन में सामाजिक दार्शनिक परिप्रेक्ष्य की प्रारम्भिक चरणों में ही अपेक्षा की गयी जिससे यह सामाजिक विज्ञान के व्यापक लक्ष्यों के साथ स्वयं को पूरी तरह से जोड़ नहीं पाया।
तकनीकी प्रबंधकीय परिप्रेक्ष्य : विशेषताएँ-
-लोक प्रशासन का
साध्य कार्यकुशलता तथा मितव्ययिता
-तार्किकता तथा
प्रत्यक्षवाद का अनुपयोग
-तथ्य अभिमुखन
-आर्थिक मनुष्य की
संकल्पना
-सिद्धान्तों की
खोज तथा विकास
-मानव संसाधन के
रूप में
-मानवों तथा
मशीनों का अधिकतम दोहन
-अधिकतम उत्पादन
पर बल
-निर्णयों को वैज्ञानिक
आधार प्रदान करना
-संरचना पर बल
-नियमों कानूनों
की अमूर्त्त श्रृंखला
-मानकों का
निर्धारण तथा प्राप्ति हेतु लक्ष्मण रेखा
-मौद्रिक
अभिप्रेरण
-स्वचालन पक्ष पर
विशेष बल
-आदर्शों का
निर्धारण तथा प्राप्त करने की चेष्टा
-परम्परागत सत्ता, दबावपूर्ण सत्ता तथा
कानूनी-तार्किक सत्ता
-अधोगामी संचार पर
विशेष बल
-व्यक्तिनिरपेक्ष
व्यवस्था
-कठोर दण्डात्मक
विधान
सामाजिक दार्शनिक परिप्रेक्ष्य : विशेषताएँ
-लोक प्रशासन का
साध्य सामाजिक समता, मूल्य, परिवर्त्तन, प्रासांगिकता, बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय
-उत्पादन की
अपेक्षा वितरण पर ध्यान
-सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक मूल्यों को
ध्यान में रखा जाना
-समानता का
दृष्टिकोण
-अधिकतम लोगों का
अधिकतम कल्याण सुनिश्चित करना
-सामूहिकता, सामूहिक निर्णयन तथा
समूह-गतिकी पर बल
-अनौपचारिक संगठन
पर बल
- सामाजिक मनुष्य
(अतार्किक मनुष्य) की संकल्पना
-अभिप्रेरण पर बल
-सहसत्ता तथा
सत्ता के स्वीकरण पक्ष पर बल
-उत्पादन का कारण मानवीय संबंध
- त्रि-विमीय संचार
पर बल ।
महिला कल्याण से सम्बंधित नियम
भारत में महिला कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए अनेक
संवैधानिक गैर संवैधानिक
प्रावधान किए गए हैं। भारतीय संविधान में महिलाओं के लिए विशेष प्रावधान किये गये हैं। अनुच्छेद
14, 15 और 16 में लिंगभेद पर प्रतिबंध महिलाओं को पुरुषों के
समान महत्व दिया गया है ।
अनु. 23 और 24 के द्वारा नौकरी शोषण, उनसे बलात् श्रम तथा उनके
क्रय-विक्रय पर रोक लगाया गया है । नीति-निर्देशक खण्ड में अनु. 39 यह प्रावधान करता
है कि महिलाओं को पुरुषों के समान वेतन प्राप्त हो तथा अनु. 42 में राज्य को निर्देश है कि वह ऐसी
व्यवस्था करे जिससे महिलाओं को प्रसूति काल में वे सुविधाएँ मिल सके जो उन्हें
मानवीय आधार पर मिलनी चाहिए।
इसके अलावा अन्य अनुच्छेद में यह निर्देश दिया गया है कि राज्य
ऐसे कानूनों का निर्माण करे जो महिलाओं के हितों से असंगत न हो तथा मौलिक कर्तव्यों
के तहत नागरिकों से कहा गया है कि वे ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो स्त्रियों के
सम्मान के विरुद्ध हो ।
संविधान द्वारा प्रदत्त महिला
अधिकारों को समुचित रूप में लागू करने के लिए सरकार द्वारा अनेक कानून बनाये गये हैं
जिससे उनके लिए समान अधिकार सुरक्षित हो सकें, उनके साथ हो रहे सामाजिक भेदभाव को समाप्त किया जा सके तथा हिंसा और
अत्याचार से पीड़ित महिलाओं को सहायता उपलब्ध हो सके ।
कुल मिलाकर इन कानूनों का उद्देश्य महिलाओं के सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक और राजनीतिक पिछड़ेपन को दूर करना है। महिलाओं को उत्पीड़न से बचाने के लिए हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 'हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956, महिलाओं को वेश्यावृत्ति से मुक्ति के लिए 'वेश्यावृत्ति निवारण अधिनियम 1956', व ‘अनैतिक व्यापार अधिनियम-1986, दहेज जैसी कुप्रथा पर प्रतिबंध हेतु दहेज निषेध अधिनियम-1961 तथा महिलाओं को प्रसूति संबंधी सुविधाओं के लिए 'प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम-1961, सती प्रथा पर रोक हेतु 'सती निषेध अधिनियम-1987, बाल विवाह पर प्रतिबंध के लिए 'बाल विवाह निषेध अधिनियम'-1976, स्त्रियों को अभद्र व्यवहार से बचाने के लिए 'स्त्री अशिष्ट निरूपण निषेध अधिनियम' 1986 तथा मादा भ्रूणों को नष्ट करने की तीव्र प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिए 'प्रसवपूर्ण निदान तकनीक अधिनियम' 1994 में लागू किया गया ।
वर्तमान समय में सामाजिक विकास कार्यक्रमों में महिलाओं का विकास महत्त्वपूर्ण हो गया है महिलाओं के सामाजिक एवं आर्थिक विकास हेतु कई कल्याणकारी योजनाएँ चलायी जा रही है यथा-कार्यरत महिलाओं हेतु छात्रावास निर्माण के लिए स्वैच्छिक/ स्थानीय संस्थाओं द्वारा वित्तीय व तकनीकी सहायता दी जा रही है।
पीड़ित महिलाओं को प्रशिक्षण एवं रोजगार के
माध्यम से पुनर्वासित करने की योजना । गर्भवती महिलाओं एवं कम उम्र के बच्चों के उचित स्वास्थ्य एवं पोषण हेतु समेकित
बाल विकास योजना ।
कार्यरत महिलाओं
हेतु शिशु गृह बनाने की योजना । अनाथों के लिए गृह निर्माण योजना | समृद्धि योजना के तहत
ग्रामीण महिलाओं को डाकघर में खाता खोलने के लिए प्रोत्साहित किया जाता
है।
इंदिरा महिला योजना' के द्वारा अन्तर्क्षेत्रीय सेवाओं का अभिसरण, आय संवर्द्धन तथा शिक्षा प्रसार एवं जागरुकता की दीर्घकालीन
प्रक्रिया रखी गयी है। कुल मिलाकर
उपरोक्त विकास कार्यक्रमों के द्वारा महिला के उत्थान हेतु गंभीर प्रयास किये जा रहे हैं।
महिला कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए कुछ संस्थाएँ
सक्रियता से कार्यरत है, यथा-महिला विकास
निगम, राष्ट्रीय महिला
आयोग, राष्ट्रीय महिला
कोप आदि। महिला विकास निगम
महिलाओं में उद्यमशीलता को प्रोत्साहित करता है और उन्हें अपेक्षित रोजगार मुहय्या कराता है। राष्ट्रीय महिला आयोग 1992 में स्थापित ऐसी संस्था
है जो भारतीय संविधान एवं अन्य प्रचलित कानूनों की परिधि में
रहते हुए महिला अधिकारों के हनन संबंधी मामलों की जाँच, इस संबंध में संवैधानिक उपबंधों एवं कानूनों की समीक्षा तथा आवश्यक संशोधन हेतु
संस्तुति प्रस्तुत करती है।
1993 में आरम्भ
राष्ट्रीय महिला कोष आय अर्जन हेतु सक्षम
बनाने के लिए महिलाओं को ऋण उपलब्ध कराता है। यह ऋण मुख्यत: डेयरी, कृषि, दुकान, हस्तशिल्प आदि के लिए
मुहैय्या कराया जाता है जो कि स्वयं सहायता समूहों, गैर-सरकारी संगठनों, महिला विकास निगमों आदि
के माध्यम से उपलब्ध कराया
जाता है।
महिला कल्याण के संबंध में संघ सरकार में मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अधीन 1985 से कार्यरत महिला एवं
बाल विकास विभाग महिलाओं एवं बच्चों के अवैध व्यापार, यौन उत्पीड़न तथा महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अन्य अपराधों पर प्रभावी नियंत्रण रखता है। इस विभाग द्वारा ही
महिलाओं के संबंध में अनेक कानून निर्मित किये जाते हैं ।
राष्ट्रीय महिला
एवं बाल विकास विभाग अपने दायित्वों का निर्वहन राष्ट्रीय जन
सहयोग एवं बाल विकास संस्थान, केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड, राष्ट्रीय महिला कोष तथा राष्ट्रीय महिला आयोग के माध्यम से
करता है।
महिला कल्याण को लेकर अनेक विशेष कार्यक्रम संचालित हैं, जैसे-स्वाधार योजना, स्वावलम्बन योजना, स्वशक्ति योजना, स्वयंसिद्धा योजना, आशा योजना, बालिका समृद्धि योजना, स्टेप (Support to Training and Employment
Programme for Women), जननी सुरक्षा योजना, विल योजना, किशोरी शक्ति योजना, वंदेमातरम् योजना आदि ।
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