JPSC MAINS NOTES पेपर 4 भारतीय राजव्यवस्था टॉपिक(राज्य के नीति निर्देशक तत्त्वों ) Q&A हिंदी में फ्री पीडीएफ डाउनलोड
प्रश्न: भारतवर्ष के
संविधान में निहित राज्य के नीति निर्देशक तत्त्वों की विवेचना
कीजिए एवं उसका महत्त्व बतलाइए ।
(Descuss the Directive Principles of State Policy enshrined in
the Indian Constitution and State their importance.)
उत्तर - राज्य के नीति
निर्देशक तत्त्व हमारी परंपरा एवं संस्कृति में आरंभ से ही मौजूद रहे हैं । लोककल्यणकारी
राज्य की संकल्पना एवं सामाजार्थिक न्याय की स्थापना के इन तत्त्वों को आयरलैंड के संविधान से लिया गया।
इस प्रावधान के माध्यम से उस दिशा को निश्चित किया गया जिसकी ओर बढ़ने का प्रयत्न भविष्य में भारत
राज्य को करना है।
ये तत्व न्यायालय में प्रवर्तनीय नहीं हैं। इनका
क्रियान्वयन राज्य की क्षमता (संसाधनों की स्थिति) पर निर्भर करता है। इनका क्रियान्वयन क्रमिक रूप से
लोकतांत्रिक माध्यम से ही हो सकता है । इसके लिए नागरिकों (मतदाताओं) में इन
सिद्धान्तों एवं इनके महत्त्व के प्रति जागृति होनी चाहिए और उनके द्वारा निर्वाचित जन-प्रतिनिधियों
पर निरंतर दवाब होना चाहिए कि इन सिद्धांतों को लागू किया जाय । इसके अलावा जनप्रतिनिधियों पर
निरंतर दबाव होना चाहिए
कि इन सिद्धान्तों को लागू किया जाय । इसके अलावा जनप्रतिनिधियों और सरकार के कार्यकलापों
के परीक्षण के लिए भी ये महत्त्वपूर्ण मापदंड प्रस्तुत करते हैं । न्यायपालिका के
दृष्टिकोण से भी DPS का अप्रत्यक्ष
महत्त्व है क्योंकि कानून की व्याख्या करने और उनकी संवैधानिकता का परीक्षण करने की
प्रक्रिया में न्यायपालिका कोशिश करती है कि DPS के अनुपालन को प्रोत्साहित किया जाय ।
DPS को निम्न
शीर्षकों के अन्तर्गत विश्लेषित किया जा सकता है
(i) आर्थिक सुरक्षा
एवं समाजवादी सिद्धान्तों से प्रेरित -
Art. 38(i) राज्य ऐसी सामाजिक व्यवस्था स्थापित
करने का प्रयास करेगा जिसमें समाजार्थिक न्याय, राजनैतिक न्याय राष्ट्रीय जीवन के सभी संस्थाओं को प्रभावित करे
जिससे लोककल्याण में वृद्धि संभव हो । 38(2) राज्य न केवल व्यक्तियों के बीच आय की विषमता
को कम करने के प्रयास करेगा बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में रहनेवाले और विभिन्न व्यवसायों
में लगे हुए लोगों के समूहों के बीच प्रतिष्ठा, सुविधाओं और अवसरों की असमानता को समाप्त करने का प्रयास करेगा ।
अनु. 39 : राज्य अपनी नीति का संचालन इस प्रकार करेगा कि सुनिश्चित
रूप से-
(i)
प्रत्येक स्त्री-पुरुष को समान रूप से जीविका
के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार हो 39(a),
(ii)
देश की भौतिक साधनों के स्वामित्व और नियंत्रण
की ऐसी व्यवस्था करेगा
कि अधिक से अधिक सार्वजनिक हित हो सके । 39 (b)
(iii) राज्य इस बात का भी ध्यान रखेगा कि सम्पत्ति और
उत्पादन के साधनों का इस प्रकार संकेन्द्रण न हो जिससे सर्वसाधारण के
हित को हानि पहुँचे । 39(c)
(iv) पुरुषों और
स्त्रियों को समान कार्य के लिए समान वेतन ।
(v) राज्य यह प्रयास
करेगा कि आर्थिक आवश्यकताओं के कारण नागरिकों को ऐसे कार्य न करना पड़े जो उसकी आयु, शक्ति और स्वास्थ्य के
अनुकूल न हो । 39(e)
(vi) बालकों के
व्यक्तित्व के समुचित विकास का अवसर और उनके शोषण से रक्षा ।
(vii) सभी के लिए समान
न्याय की व्यवस्था और जरूरतमंदों को निःशुल्क विधि सहायता 39(A)
अनु. 43 (A) : उद्योगों के प्रबंधन में कर्मकारों की भागीदारी ।
2. पाश्चात्य लोककल्याणकारी राज्य
की संकल्पना से प्रेरित-
अनु. 41 : राज्य अपनी आर्थिक सामर्थ्य और विकास की सीमाओं के भीतर काम पाने, शिक्षा पाने और बेकारी, बुढ़ापा, बीमारी और निःशक्तता की
दशाओं में लोक-सहायता पाने के अधिकार को प्राप्त कराने का प्रभावी उपबंध करेगा ।
अनु. 42 : राज्य काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं को सुनिश्चित करेगा तथा प्रसूति सहायता के
लिए उपबंध करेगा ।
अनु. 43 : राज्य इस बात का प्रयत्न करेगा कि कृषि और उद्योग में लगे
सभी श्रमिकों को अपने जीवन निर्वाह के लिए समुचित वेतन मिल सके, उनका जीवन स्तर ऊपर उठ सके।
वे अवकाश के समय का उचित उपयोग कर सकें तथा उन्हें सामाजिक-सांस्कृतिक उन्नति का अवसर प्राप्त
हो सके।
अनु. 45 : राज्य संविधान के लागू होने के 10 वर्ष के भीतर सभी बालकों
को 14 वर्ष की आयु पूरी करने तक
निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने का प्रयास करेगा।
3. महात्मा गाँधी के विचारों से
प्रेरित :-
अनु. 40 : राज्य ग्राम पंचायतों को स्वायत्त शासन की इकाईयों के रूप
में संगठित करेगा। (पंचायतों का संगठन और उन्हें पर्याप्त शक्ति प्रदान करना) ।
अनु. 47 : राज्य सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार तथा मादक द्रव्यों और
हानिकारक औषधियों का निषेध करेगा ।
अनु. 48 : राज्य कृषि और पशुपालन के विकास एवं गाय, बछड़ों तथा अन्य दुधरु
पशुओं के वध का प्रतिषेध करने के लिए कदम उठाएगा ।
48(A) राज्य के
पर्यावरण के संरक्षण तथा संवर्द्धन का और वन तथा वन्य-जीवों की रक्षा करने का प्रयास
करेगा ।
अनु. 51 : राज्य अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की अभिवृद्धि का, राष्ट्रों के बीच न्यायसंगत और समानतापूर्ण
संबंधों को बनाए रखने का एवं अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का मध्यस्थता द्वारा निपटारे के लिए प्रोत्साहन
देने का प्रयास करेगा ।
अनु. 46 : राज्य, जनता के दुर्बल वर्गों के विशेषकर SC, STs की शिक्षा एवं अर्थ संबंधी हितों की विशेष
सावधानी से अभवृद्धि करेगा ।
4. उदारवादी लोक व्यवस्था :-
अनु. 44 : राज्य, भारत के समस्त राज्य क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान
सिविल संहिता लागू करने
का प्रयास करेगा ।
अनु 50 : कार्यपालिका से न्यायपालिका के पृथक्करण के लिए कदम उठाएगा
।
5. सांस्कृतिक विरासत (धरोहरों) का
संरक्षण :-
अनु. 49 : राज्य ऐतिहासिक एवं राष्ट्रीय महत्त्व के स्मारकों, स्थानों और वस्तुओं की रक्षा करेगा ।
उपरोक्त विवेचना से स्पष्ट है कि DPS का मूलभूत उद्देश्य
समाजार्थिक लोकतंत्र की स्थापना है ।
नीति निदेशेक तत्त्वों का महत्त्व :-
(i) जनमत
की शक्ति- यद्यपि ये तत्त्व न्यायालय द्वारा क्रियान्वित
नहीं हो सकते लेकिन इन तत्त्वों की अनदेखी करनेवाली सरकार को चुनावों में हार का
सामना करना पड़ सकता है। न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय न होने के बावजूद ये तत्व सरकार को जनता
के समक्ष
उत्तरदायी बनाती है । इस प्रकार इन तत्त्वों के पीछे जनमत
की शक्ति है जो लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत है ।
(ii) शासन की सफलता का मापदण्ड– इन सिद्धांतों
द्वारा जनता को शासन की सफलता व असफलता की जाँच करने का मापदण्ड भी (संविधान द्वारा) प्रदान किया गया है ।
(iii) संविधान की व्याख्या में सहायक
न्यायालयों के लिए मार्गदर्शक का
कार्य- ये तत्त्व देश के शासन
में मूलभूत हैं यानी प्रशासन के लिए उत्तरदायी सभी सत्ताएँ उनके द्वारा निर्देशित होंगी अतः शासन के एक
महत्त्वपूर्ण अंग के रूप में न्यायपालिका से अपेक्षा की जा सकती है कि वह संविधान की
व्याख्या में निर्देशक तत्त्वों को उचित महत्त्व देगी ।
(iv) राष्ट्रीय जीवन
में उत्पन्न तनावों-नक्सलवाद एवं अन्य के समाधान के संदर्भ में महत्त्व |
Post a Comment