JPSC MAINS EXAM NOTES पेपर 4 टॉपिक(लोक प्रशासन के अध्ययन) Q&A हिंदी में free download pdf
लोक प्रशासन के अध्ययन विभिन्न दृष्टिकोण की विवेचना कीजिए ?
उत्तर- लोक प्रशासन के
अध्ययन के उपागम (Approaches to the Study
of Public Administration) लोक प्रशासन के अध्ययन के विभिन्न उपागमों की व्याख्या इस प्रकार है-
1. दार्शनिक उपागम—यह सबसे व्यापक और पुराना दृष्टिकोण है। यह प्रशासनिक गतिविधियों के सभी पहलुओं पर विचार करता है। यह मानक दृष्टिकोण पर आधारित है और क्या होना चाहिए इस पर केन्द्रित करता है। इसका उद्देश्य प्रशासनिक गतिविधियों के आधारभूत आदशों (सिद्धांतों) को प्रतिपादित करना है। प्लेटो का रिपब्लिक, जॉन लॉक का लेवियाधन, महाभारत का 'शांतिपर्व', स्वामी विवेकानन्द और पीटर सेल्फ इस दृष्टिकोण की वकालत करते हैं।
2.
कानूनी उपागम- यह
दृष्टिकोण यूरोप के फ्रांस, बेल्जियम और जर्मनी जैसे महाद्वीपीय देशों में सबसे अधिक लोकप्रिय रहा है। ब्रिटेन
और अमेरिका में भी इसके समर्थक हैं। अमेरिका में
फ्रैंक जे गुडनॉव इस दृष्टिकोण के प्रमुख समर्थक थे। यह लोक प्रशासन का अध्ययन कानून के एक हिस्से के रूप में करता है और संवैधानिक
कानूनों, ढाँचे, संगठन, शक्तियों, कार्यों और लोक अधिकारियों की सीमाओं पर बल देता है।
इसीलिए इसे न्यायिक या न्यायवादी दृष्टिकोण के रूप में भी
जाना जाता है। यह सबसे पुराना व्यवस्थित रूप से
निर्धारित दृष्टिकोण है। यह मुक्त व्यापार के युग में अस्तित्व में आया, जब राज्य की भूमिका सीमित
और सरल थी।
3.
ऐतिहासिक
उपागम-यह भूतकाल में हुए ऐतिहासिक परिवर्तनों और वर्तमान पर पड़ने वाले इसके प्रभावों के जरिए लोक प्रशासन का अध्ययन करता है। यह
प्रशासनिक एजेंसियों से संबंधित सूचना को कालानुक्रम में
संगठित और व्याख्यायित करता है।
एल. डी. ह्वाइट ने अमरीकी संघीय प्रशासन का इसके
निर्माणात्मक काल में अपने चार शानदार ऐतिहासिक
अध्ययनों के जरिए वर्णन किया है, जिनका नाम है, दि फेडरालिस्ट्स (1948), दि जैफर्सीनयंस (1951), दि रिपब्लिक एक कौटिल्य का अर्थशास्त्र, मुगल प्रशासन और
जैक्सनियंस और दि ब्रिटिश प्रशासन के विभिन्न अध्ययन भारत की पुरान प्रशासनिक
व्यवस्थाओं की एक झलक देते हैं। यह दृष्टिकोण प्रशासन के जीवनी संबंधी दृष्टिकोण से निकट रूप से जुड़ा हुआ है ।
4. केस पद्धति उपागम - इसका नाता उन खास घटनाओं के विस्तृत वर्णन से है जो एक प्रशासक के निर्णय निर्माण में मुख्य भूमिका निभाते हैं या उस ओर ले जाते हैं। वह प्रशासकीय वास्तविकताओं को पुननिर्मित करने का प्रयास करता है और लोक प्रशासन के विद्यार्थियों को उनसे परिचित कराता है। 1930 के दशक में अमेरिका में लोकप्रिय 1952 में पब्लिक इडमिनिस्ट्रेशन एंड पॉलिसी एडमिनिस्ट्रेशन के नाम से बीस केस अध्ययन हेरोल्ड स्टीन के संपादन में प्रकाशित हुए।
भारत में भी भारतीय लोक प्रशासन संस्थान (नई दिल्ली) और राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी (मूसरी) ने कई केस प्रकाशित किए हैं। ट्वाइट वाल्डों के अनुसार, केस पद्धति लोक प्रशासन के अध्ययन और अध्यापन का एक स्थायी अंग होने जा रहा है।
उपरोक्त के अलावा, लोक प्रशासन के अध्ययन के
कई अन्य दृष्टिकोण भी है।
(i)
संरचनात्मक उपागम,
(ii)
मानव संबंध उपागम,
(iii)
व्यवहार संबंधी
उपागम,
(iv)
तुलनात्मक उपागम,
(v)
पर्यावरणीय उपागम,
(vi)
विकास उपागम तथा
(vii)
लोक चयन उपागम
(i) संरचनात्मक उपागम - इसे शास्त्रीय या परम्परागत उपागम भी कहते हैं। यह दृष्टिकोण आदशों पर बल देता है। इसका सरोकार चाहिए' जैसे शब्दों से है। इस अनुसार लोक प्रशासन का उद्देश्य कार्यकुशलता तथा मितव्ययिता है। यह विचारधारा सिद्धान्तों का समर्थन करती है तथा सिद्धान्त निर्माण पर बल देती है। यह लोक प्रशासन के क्षेत्र को प्रबंध तक सीमित करके उसको वैज्ञानिक आधार प्रदान करती है। इस विचार-धारा के समर्थकों में विल्सन, फायोल, टेलर, विलोबी, एल. डी. हाइट, गुलिक व उविंद तथा मूने एवं रैले हैं।
(ii) मानव संबंध उपागम- यह दृष्टिकोण शास्त्रीय उपागम के प्रतिक्रिया स्वरूप अस्तित्व में आया। एल्टन मायों को मानव संबंध आंदोलन का जनक कहा जाता है। यह विचारधारा संगठन में मानवीय संबंधों पर विशेष बल देती है। यह संगठन में अनौपचारिक संगठन को मान्यता प्रदान करती है। यह मानती है कि अनौपचारिक संगठन तथा अनौपचारिक संबंध संगठन के उत्पादन को नियंत्रित तथा संचालित करते हैं। इस विचार-धारा ने सामाजिक मानव की अभिकल्पना की है।
(iii) व्यवहारवादी उपागम - मानव संबंध उपागम शास्त्रीय उपागम की आंशिक प्रतिक्रिया थी। जबकि व्यवहारवाद उपागम शास्त्रीय उपागम की पूर्ण आलोचना के रूप में उभरी जहाँ शास्त्रीय उपागम का आधार तकनीकी वैज्ञानिक पर्यावरण है। वहीं, व्यवहारवादी उपागम का आधार सामाजिक मनोवैज्ञानिक पर्यावरण है। यह सिद्धान्तों की अपेक्षा व्यवहार पर संकेंन्द्रण करती है।
यह प्रशासन में शोध, अनुसंधान, प्रत्यक्षवाद, अनुभव तथा मनोवैज्ञानिक कारकों को पर्याप्त स्थान देती है। यह मनुष्य के सीमित तार्किकता पर विश्वास करती है और इस क्रम में प्रशासनिक मानव' की अभिकल्पना करती है। इसके समर्थकों में हरबर्ट साइमन, बर्नाड, रॉबर्ट बहल आदि हैं।
(iv) तुलनात्मक उपागम-तुलनात्मक उपागम प्रशासन तथा प्रशासनिक ईकाइयों के मध्य तुलना पर बल देता है। यह तुलना अन्तर्राष्ट्रीय अन्तसांस्कृतिक, संकरंसांस्कृतिक,अन्तर्राष्ट्रीय तथा अन्तक्षेत्रीय रूप में की जाती है। रिग्स इस विचारधारा के जनक माने जाते हैं। वह तुलनात्मक लोक प्रशासन समूह में 10 वर्षों तक अध्यक्ष की भूमिका में रहे। यह के आधार पर एकरूपता, व्यवस्था सुधार तथा सिद्धान्तों के निर्माण पर बल देती है।
(v) पर्यावरणीय उपागम- इसे पारिस्थितिकीय उपागम भी कहते हैं। यह दृष्टिकोण प्रशासन की एक उपव्यवस्था के रूप में देखता है। व्यवस्था दृष्टिकोण के अनुसार इस उपागम की भी यह मान्यता है कि उपव्यवस्थाओं में अन्तर्क्रिया, अन्तर्सम्बद्धता, अन्तर्निर्भरता तथा क्रमिकता पायी जाती है। इसके परिणामस्वरूप एक उपव्यवस्था दूसरे को प्रभावित करती है तथा स्वयं भी उससे प्रभावित होती है।
एक देश की व्यवस्था में प्रशासकीय उपव्यवस्था, तकनीकी उपव्यवस्था, आर्थिक उपव्यवस्था, राजनैतिक उपव्यवस्था, सांस्कृतिक उपव्यवस्था आदि सम्मिलित हैं।
(vi) विकास उपागम - यह दृष्टिकोण लोक प्रशासन को विकास के रूप में देखता है। यह प्रशासन को सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन के यंत्र के रूप में मानता है। प्राय: इस दृष्टिकोण का प्रचलन विकासशील देशों में अधिक है, जहाँ विकास-प्रशासन की अवधारणा उद्भूत हुई। 'विकास प्रशासन' शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 1955 में भारत के यू.एल. गोस्वामी ने किया।
यह दृष्टिकोण दो भूमिकाओं पर बल देता है-विकास प्रशासन तथा प्रशासनिक विकास रिग्स के अनुसार विकास प्रशासन तथा प्रशासनिक विकास में मुर्गी तथा अण्डे का संबंध है। यह विचारधारा कार्योन्मुख, परिमाणोन्मुख, मूल्योन्मुख, परिवर्तनोन्मुख तथा ग्राहकोन्मुख है |
(vii) लोक चयन उपागम- इस विचारधारा के मुख्य प्रतिपादक विसेंट ऑस्ट्रम हैं। यह विचारधारा बहुलवाद पर आधारित है। यह एक प्रति-नौकरशाही विचारधारा है। यह विचारधारा लोक प्रशासन पर अर्थशास्त्र का एक अनुप्रयोग है। यह लोक प्रशासन में खेल सिद्धान्त, पैरेटो कार्यकुशलता तथा लोक-निजी वस्तु में द्वन्द्व को बढ़ावा देती है। यह विचारधारा व्यक्ति को तार्किक मानती है जो अपने लाभ को अधिकतम तथा हानि को न्यूनतम करना चाहता है।
इसके अतिरिक्त लोक प्रशासन में अन्य निम्नलिखित दृष्टिकोण प्रचलित
हैं-
(A)
व्यापक दृष्टिकोण,
(B)
संकुचित
दृष्टिकोण,
(C)
पोस्डकोर्ब
दृष्टिकोण,
(D)
विषयवस्तु
दृष्टिकोण तथा
(E)
जनकल्याणकारी
दृष्टिकोण ।
(A) व्यापक दृष्टिकोण- व्यापक दृष्टिकोण के अन्तर्गत इस
दृष्टिकोण के समर्थकों का मानना है कि लोक
प्रशासन का सम्बंध सरकार की तीनों शाखाओं से है। इसके समर्थन ह्वाइट, मार्क्स पिफ्नर हैं।
(B) संकुचित दृष्टिकोण - संकुचित दृष्टिकोण के अन्तर्गत लोक प्रशासन का संबंध सरकार की कार्यपालिका शाखा से है। इसके समर्थकों में साइमन, स्मिथ, वर्ग तथा थामसन है।
विलोबी के अनुसार लोक प्रशासन सरकार की चौथी शाखा है।
(C)
पोस्डकोर्ब
दृष्टिकोण - POSDCORB इसे लूथर गुलिक ने दिया।
इस दृष्टिकोण के अन्तर्गत POSDCORB के अन्तर्गत
परिभाषित गतिविधियाँ ही लोक प्रशासन है।
(D)
विषयवस्तु
दृष्टिकोण– लेविस मेरियम ने POSDCORB दृष्टिकोण को एकांगी करार देते हुए
कहा कि लोक प्रशासन कैंची के दो फलकों के समान है एक फलक POSDCORB है और दूसरा दृष्टिकोण
इसकी विषयवस्तु है।
(E)
जनकल्याणकारी
दृष्टिकोण—इस दृष्टिकोण में तकनीकी गतिविधियों और औपचारिकताओं से दूर लोक प्रशासन का उद्देश्य लोक कल्याण
निर्धारित किया गया।
वस्तुतः यह धारणा कल्याणकारी राज्य की अवधारणा में उद्भव के
पश्चात् हुआ जिसका उद्देश्य अधिकतम व्यक्तियों का अधिकतम कल्याण है।
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