JPSC MAINS NOTES पेपर 6 विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विकास टॉपिक (जैवतकनीकी ) Q&A हिंदी में फ्री पीडीएफ डाउनलोड

JPSC MAINS EXAM NOTES IN HINDI

 

प्रश्न : जैवतकनीकी का क्या अर्थ है ? कृषि तथा पर्यावरण के क्षेत्र में इसकी उपादेयता की विवेचना करें।

उत्तर- जैव प्रौद्योगिकी का निर्माण जीव विज्ञान, रसायन विज्ञान तथा अभियांत्रिकी की मदद से हुआ है । वास्तव में जीवों का मानव कल्याण हेतु उपयोग ही जैव प्रौद्योगिकी है वर्त्तमान में जैव प्रौद्योगिकी से तात्पर्य सूक्ष्म जीवों और अन्य जीवों का मानव कल्याण हेतु मनोवांछित उपयोग है ।

जैव प्रौद्योगिकी में मुख्यतः जीन-अभियांत्रिकी, उत्तक संवर्द्धन, भ्रूण स्थानान्तरण, कोशिका-संवर्द्धन, क्लोनिंग, हिब्रिडोमा आदि आते हैं ।

कृषि क्षेत्र में उपयोग- भारत एक कृषि प्रधान देश है और समस्त विश्व किसी-न-किसी रूप में कृषि से अवश्य जुड़ा है । इस क्षेत्र में जैव प्रौद्योगिकी के उपयोग की असीम संभावनाएँ हैं और भारत इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल की हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत खाद्यान्न का एक आयातक था परन्तु हरित-क्रान्ति, जिसमें जैव प्रोद्यौगिकी का भी महत्वपूर्ण योगदान है, के फलस्वरूप आज भारत खाद्यान्न के क्षेत्र में भी मात्र स्वालंबी ही नहीं वरन् निर्यात्तक है ।

जैव प्रोद्यागिकी के मदद से विभिन्न फसलों की उन्नत किस्म का विकास किया गया है इसके आलावा कीटों एवं रोगाणुओं पर जैव-नियंत्रण के सफल प्रयोग किए गए हैं ।

कृषि में ऊर्वरकों, खासकर नाइट्रोजन उर्वरकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है जैव प्रौद्योगिकी की मंदद से नाइट्रोजन उर्वरक के लिए एजोला एजोटोबैक्टर, क्लाउस्ट्रिडियम एवं राइजोबियम का उपयोग किया जाता है । सल्फर उर्वरकों के लिए थ्रो-बैसिल्स और फॉस्फोरस उर्वरक हेतु बैसिलस सबटिलिस का प्रयोग होता है ।

जैव उर्वरकों के उपयोग से मात्र खनिज तत्वों की पूर्ति ही नहीं होती वरन् मृदा में सुधार आता है परन्तु वर्त्तमान में आवश्यकता की तुलना में इनका उत्पादन बहुत ही कम है इनका निर्माण राष्ट्रीय अनुसंधानशालाओं, कृषि विज्ञान केन्द्रों, सरकारी और गैर सरकारी कृषि फार्मों और किसानों द्वारा भी किया जाता है ।

वातावरण के नाइट्रोजन का उपयोग अधिकांशतः पौधे सीधे नहीं कर पाते परन्तु कुछ जीव इनका उपयोग सीधे कर लेते हैं । ऐसे जीवों में इस कार्य हेतु पाए जाने वाले जीन को निफ जीन (Nif) कहते हैं । निफ-जीन का स्थानान्तरण तथा गाँठ बनाने वाले जीनों पर शोध कार्य अभी चल रहे हैं और ऐसा प्रयास किया जा रहा है जिससे अन्य पौधों में भी वातावरण से नाइट्रोजन को सीधे ग्रहण करने की क्षमता विकसित हो जाए ।

चिकित्सा के क्षेत्र में- चिकित्सा के क्षेत्र में जैव प्रौद्योगिकी का प्रयोग काफी समय से होता आ रहा है और आज अधिकांशतः रोगों पर मनुष्य विजय प्राप्त कर चुका हैं |इसके प्रयोग से रोगों की जाँच सुविधापूर्वक सहजता से एवं सुनिश्चत ढंग से की जाती है |जैव प्रोद्योगिकी की मदद से कई प्रतिजैविकों की खोज की जा चुकी है जो विभिन्न रोगों के रोकथाम में सहायक हैं । कई जानलेवा बीमारियों पर मनुष्य ने विजय उनके विरुद्ध वैक्सिन बनाकर प्राप्त की है । इन वैक्सिनों के निर्माण में मुख्यतः उन्हीं रोगाणुओं का इस्तेमाल होता है परन्तु उनकी प्रकृति आज बदली जा चुकी है। कैन्सर जैसी बीमारियों के रोकथाम हेतु उसकी जाँच शीघ्रता से करने में और उनके इलाज में भी जैव प्रौद्योगिकी की महत्वपूर्ण भूमिका है ।

जैव प्रौद्योगिकी के उपयोग से विभिन्न प्रकार की दवाएँ जैसे-एण्टीबायटिक, एंजाइम,हार्मोन इत्यादि का निर्माण एवं उपयोग किया जा रहा है ।

जैव प्रौद्योगिकी निःसंतान दम्पत्तियों के लिए एक वरदान साबित हुई है । इसमें टेस्टट्यूब बेबी, कृत्रिम गर्भाधान और भ्रूणस्थानान्तरण तकनीकी की मदद से ऐसे लोग लाभान्वित हो रहे हैं ।

जन्मदर नियंत्रण हेतु गर्भ-निरोधकों के विकास में भी जैव प्रौद्योगिकी की महत्वपूर्ण भूमिकारही है । इसकी मदद से दीर्घकालीन टीकों के अलावा मुखीय गोलियाँ (Oral Peals)

विकसित की गई है । विश्व की पहली हार्मोनविहीन मुखीय गोली सेन्टक्रोमैन विकसित की गई है जो अपने यहाँ बाजार में 'सहेली' नाम से उपलब्ध है ।

पशुचिकित्सा के क्षेत्र में भी संक्रामक रोगों के बचाव के साथ-साथ प्रभावी प्रतिरोधक दवाओं का उत्पादन भी किया जा रहा है । इसकी मदद से बीमारियों के रोकथाम में काफी मदद मिली है । पशु नस्ल सुधार के क्षेत्र में कृत्रिम गर्भाधान एवं भ्रूण स्थानान्तरण के अच्छे परिणाम मिले हैं । पशुओं में नर बन्ध्याकरण हेतु तालशर Talshar नाम का टीका विकसित किया गया है । पशुओं में रोगों से बचाव, पर्यावरण से लड़ने की क्षमता तथा अधिक उत्पादकता हेतु उनके अण्डाणु या शुक्राणु में ही परिवर्तन कर अथवा भ्रूणावस्था में ही कुछ परिवर्तन कर क्लोनिंग तकनीक की मदद से वांछित जीव-प्रजनन भी आज संभव हुआ है |

इन सबके अलावा सस्ती एवं अच्छी औषधियाँ, वृद्धि हार्मोन, इन्सुलिन, आनुवांशिक बीमारियों पर नियंत्रण, वायरस रोगों की रोकथाम आदि के क्षेत्र में भी जैव प्रोद्यौगिकी काफी सहायक है ।

पर्यावरण के क्षेत्र में जैव प्रौद्योगिकी की मदद से प्रदूषण पर नियंत्रण प्राप्त करने की दिशा में कई कार्य हुए हैं । इसकी मदद से ऐसे जीवों का विकास किया गया है जो प्रदूषण का पता आसानी से लगा सकते हैं ।

मुख्य प्रदूषण कारकों में जल-मल, कूड़े-कचरे, अवशिष्ट पदार्थों का महत्वपूर्ण योगदान रहता है । इनके उपयोग से जैव गैस बनाने के लिए कुछ सूक्ष्म जीवों को विकसित किया गया है । इसके साथ-साथ ऐसी तकनीकी भी विकसित की गई है जिससे ये प्रदूषक ऊर्जा देने के साथ-साथ उर्वरक का भी निर्माण करते हैं । अपनी राजधानी पटना में भी इस संयंत्र के उपयोग से जवाहर लाल नेहरू मार्ग और गाँधी मैदान में प्रकाश की व्यवस्था की गई थी । केन्द्र सरकार के द्वारा राज्य सरकारों को जैव ऊर्जा के उपयोग के अधिकाधिक लक्ष्य प्राप्त करने के निर्देश दिए गए हैं। वर्त्तमान में खाना पकाने में विश्व में चीन के बाद जैव ऊर्जा का उपयोग भारत ही करता है । अभी इसके उपयोग से प्रतिवर्ष 38लाख टन खाद ही नहीं मिल रही वरण करीब 200 लाख टन जलावनी लकड़ी की भी बचत हो रही है ।

प्रदूषण नियंत्रण के क्षेत्र में सुपरबग का विकास एक महत्वपूर्ण कदम है। यह वातावरण में फैले जलीय प्रदूषण को नियंत्रित करता है । इसका विकास अपने यहाँ नागपुर में किया गया । इसका उपयोग सफलतापूर्वक अमरीका-इराक युद्ध के बाद, कनाडा के पोत से समुद्र में तैलीय रसाव के समय और जापान के द्वारा भी अपने संयंत्रों से तैलीयरिसाव से हुए प्रदूषण को रोकने में किया गया है ।

अन्य क्षेत्रों में उपयोग - उद्योग - अन्य क्षेत्रों में भी जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग हुआ है और इसकी संभावनाएँ भी हैं । दवा उद्योग के क्षेत्र में रोगनिदान एवं अन्य स्वास्थ्य संबंधी उद्योग में इसका महत्वपूर्ण योगदान है । इसके अलावा सौन्दर्य प्रसाधनों के निर्माण में भी इसका उपयोग किया जाता है । वस्त्र उद्योग में भी एलमएमाइलेज का उपयोग बहुतायत से किया जाता है और यह जैव प्रौद्योगिकी से ही प्राप्त किया जाता है ।

 खाद्य उत्पादन एवं प्रसंस्करण के क्षेत्र में विभिन्न एंजाइमों का प्रयोग किया जाता है जो उत्पादों की गुणवत्ता बनाए रखने के साथ-साथ उन्हें खराब होने से भी बचाते हैं । ऐसे पदार्थों में(Elutin) तथा प्रोटीएज, बिस्कूट एवं बेकरी उद्योग में किया जाता है । इसके अलावा ग्लूकोज एवं प्रक्टोज आदि का उत्पादन भी जैव प्रौद्योगिकी की मदद से किया जाता है ।

पेय पदार्थों के निर्माण में जैसे चाय, शराब आदि में भी जैव प्रौद्योगिकी का महत्वपूर्ण योगदान है। मांस उद्योग में भी जैव प्रौद्योगिकी खासकर बूढ़े पशुओं के मांस को मुलायम बनाने में उपयोग साबित हुई । इतना ही नहीं मांस के लिए पाले जाने वाले पशुओं जैसे-भेड़, बकरी, सूअर, कुक्कुट आदि की नस्लों के सुधार, उनका पालन, ग्रहण, वितरण तथा संस्करण में भी इसका महत्वपूर्ण योगदान है जैव विविधता के संरक्षण में दुर्लभ तथा लुप्त प्राय किस्मों को संरक्षित से सुरक्षित रखने के साथ-साथ उनके अन्य उपयोगों में जैव प्रौद्योगिकी ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है । इसके साथ-साथ शोध एवं विकासात्मक कार्यों में जैव प्रौद्योगिकी की मदद से कई महत्वपूर्ण चीजें विकसित की गई हैं और अन्य के विकास हो रहे हैं ।

 

 





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