JPSC EXAM MAINS(paper 4 ) question & answer टॉपिक(भारत में पंचायती राज्य के उद्देश्यों तथा उसकी विशेषताओं)
प्रश्न : भारत में पंचायती
राज्य के उद्देश्यों तथा उसकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिये ।
(Discuss the objectives and features of the
Panchayat Raj in India)
उत्तर- महात्मा गाँधी के 'ग्रामराज्य' के सपनों को जमीन पर उतारने
शासन को
की भागीदारी द्वारा स्थानीय शासन की व्यवस्था सुचारू रूप से
करने और स्थानीय समस्याओं के समाधान में स्थानीय लोगों
की पहल क्षमता विकसित करने के लिए अनुच्छेद 40 में (नीति निर्देशक तत्त्वों के तहत्)
'पंचायती राज' का प्रावधान किया गया। 73वें संविधान संशोधन द्वारा इसे सांविधानिक दर्जा प्रदान किया गया। भारत में पंचायती राज्य के उद्देश्यों को निम्न बिन्दुओं पर स्पष्ट किया जा सकता है :-
भारत गाँवों का देश है। अतः भारत की उन्नति तभी हो सकती है जब गाँवो की उन्नति हो। गाँवों के समग्र विकास के लिए ग्रामीण शासन व्यवस्था आवश्यक है।
लोकतंत्र इस आधारभूत अवधारणा पर आधारित है कि शासन के प्रत्येक स्तर पर जनता अधिक से अधिक शासन संबंधी कार्यों में हाथ बँटाए तथा स्वयं पर राज्य करने का उत्तरदायित्व स्वयं वहन करें।
शासन को निचले स्तर तक लोकतांत्रिक बनाने एवं लोकतंत्र के आधार को व्यापक बनाना जिसके अन्तर्गत केन्द्र एवं राज्यों से जिलों एवं प्रखण्डों के जरिए सत्ता का हस्तांतरण।
स्थानीय समस्याओं, जरूरतों, अपेक्षाओं, असंतोष आदि के संदर्भ में स्थानीय लोगों को ही वस्तुस्थिति की सही जानकारी होती है अतः स्थानीय शासन में लोगों को भागीदार बनाना।
● स्थानीय समाजार्थिक समस्याओं का हल स्थानीय लोगों द्वारा ही
हल करना।
स्थानीय लोगों को स्थानीय मामलों में नियोजन करने और इनका संचालन करने हेतु अवसर मुहैया कराना।
* राजनीतिक समझ, जागरुकता एवं देश के भावी नेतृत्व प्रशिक्षण।
*समाज के कमजोर वर्गों महिलाओं, दलितों, पिछड़ों के सशक्तीकरण ।
*ग्रामीण लोगों में सामुदायिकता और आत्मनिर्भरता
की भावना विकसित करना।
*केन्द्र एवं राज्य स्तर के मंत्रालयों एवं जिलाविकास विभागों को ग्रामीण मामलों की परिसीमा में लाना ।
विशेषताएँ-73वीं संविधान संशोधन 1992 द्वारा नयी पंचायती राज व्यवस्था अस्तित्व में आयी इसे संविधान के नवें भाग में रखा गया है। इसकी विशेषताएँ निम्नरूपेण हैं :
(i) त्रिस्तरीय प्रणाली-ग्राम स्तर पर पंचायत, मध्यवर्ती स्तर यानी
प्रखंड स्तर पर
पंचायत समिति एवं जिला स्तर पर जिला परिषद् का
गठन किया जाता है।
(ii) पंचायतों की संरचना-राज्य विधानमंडलों को विधि द्वारा पंचायतों
की संरचना के लिए उपबंध करने की शक्ति प्रदान की गई है परन्तु
किसी भी स्तर पर पंचायत के प्रादेशिक क्षेत्र की जनसंख्या और ऐसी
पंचायत में निर्वाचन द्वारा भरे जाने वाले स्थानों की संख्या के बीच
अनुपात समस्त राज्य यथासंभव एक ही होगा।
(ii) आरक्षण की व्यवस्था — SC एवं ST को उनकी जनसंख्या के अनुपात में
आरक्षण तथा इन आरक्षित सीटों में 1/3 भाग इन्हीं वर्गों की
महिलाओं के लिए आरक्षित।
कुल सीट का 1/3 भाग महिलाओं के लिए आरक्षित होता है। राज्य को
आरक्षण के संबंध
में व्यवस्था करने की शक्ति दी गई है।
(iv) चुनाव-सभी ग्रामीण वयस्क (18 वर्ष या अधिक), जो मतदाता सूची में नामांकित हो, ग्राम सभा के सदस्य होते हैं। यही सदस्य ग्राम समिति तथा ग्राम पंचायत सदस्यों का चुनाव करते हैं। चुनाव प्रत्यक्ष
मतदान प्रक्रिया द्वारा होता है।
ग्राम समिति के सदस्य पंचायत समिति के सदस्यों का चुनाव करते हैं। जिला पंचायत के सदस्यों के चयन में पंचायत समिति के सदस्य भाग लेते हैं।
पंचायत के सदस्य चुने जाने की न्यूनतम आयु 21 वर्ष है।
(v) अवधि-कार्यकाल 5 वर्ष। किसी पंचायत के गठन के लिए निर्वाचन 5 वर्ष की अवधि के पूर्व और विघटन की तिथि से 6 माह की अवधि के अवसान से पूर्व ही करा लिया जाएगा।
(vi) सदस्यता के लिए अर्हता-राज्य विधान मंडल के निर्वाचन की अहंता रखनेवाले पंचायत का सदस्य होने के लिए अर्ह होंगे। केवल एक अंतर है 21 वर्ष की आयु का व्यक्ति भी सदस्य बनने के लिए अर्ह होगा। निरर्हता का प्रश्न ऐसे प्राधिकारी को विनिर्दिष्ट
किया जाएगा जो राज्य विधानमंडल विधि द्वारा
उपबंधित करे।
(vii) राज्य वित्त आयोग- प्रत्येक 5 वर्ष पर राज्यपाल द्वारा गठन। यह आयोग पंचायतों के वित्तीय साधनों, सहायता राशि, विभिन्न शुल्कों आदि पर अपनी रिपोर्ट देगा।
(vii) राज्य निर्वाचन आयोग के गठन का भी प्रावधान है जिसमें राज्यपाल द्वारा नियुक्त एक राज्य निर्वाचन आयुक्त होगा। निर्वाचक नामावली तैयार करने, पंचायतों के निर्वाचन के संचालन, अधीक्षण निर्देशन नियंत्रण इसमें निहित होगा। राज्य निर्वाचन
आयुक्त उसी प्रकार हटाया जा सकेगा। जिस प्रकार उच्च न्यायालय में न्यायाधीश को हटाया जा सकता है।
न्यायालयों के हस्तक्षेप का वर्जन-अनुच्छेद 329 में यह कहा गया है कि निर्वाचन की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाने पर न्यायालय उसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं। उसी प्रकार न्यायालयों को इस बात की अधिकारिता नहीं होगा कि वे अनुच्छेद 243ट के अधीन
निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन या स्थानों के आवंटन से संबंधित किसी विधि की वैधानिकता की परीक्षा करें। पंचायत का निर्वाचन, निर्वाचन-अर्जी पर ही प्रश्नगत किया जासकेगा जो
ऐसे प्राधिकारी को और ऐसी रीति से प्रस्तुत की
जाएगी जो राज्य विधानमंडल द्वारा बनाई।
गई विधि द्वारा या उसके अधीन विहित किया जाए।
पंचामतों के कार्य 11वीं अनुसूची में 29 विषय हैं जिन पर
पंचायतें विधि बनाकर
उन कार्यों को कर सकेंगी। ये है कृषि तथा कृषि
में विस्तार, भू-सुधार, चकबंदी एवं
भू-संरक्षण (मृदा संरक्षण), लघु सिंचाई, जल प्रबंधन और जलाच्छान
विकास, पशुपालन,
कुक्कुटपालन एवं दुग्ध उद्योग, लघु वन उत्पाद; सामाजिक वन उद्योग तथा
फाम वनाद्याग;
मत्स्यपालन उद्योग; खाद्य प्रसंस्करण उद्योग; लघु-उद्योग; खादी ग्रामोद्योग; ग्रामीण विकास
ईंधन और पेयजल ग्रामीण सड़क, पुल, जलमार्ग तथा यातायात के
अन्य साधन; ग्राम
विद्युतीकरण एवं विद्युत वितरण; गैर-पारम्परिक ऊर्जा
स्रोत, गरीबी उन्मूलन
कार्यक्रमः
प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा; तकनीकी शिक्षा एवं
व्यावसायिक शिक्षा; वयस्क शिक्षा
एवं अनौपचारिक शिक्षा; पुस्तकालय; सांस्कृतिक कार्यकलाप; बाजार, हाट एवं मेला:
स्वास्थ्य और सफाई; परिवार कल्याण; बाल विकास और महिला विकास समाज कल्याण, पिछड़े वर्गों-अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति सहित अन्य पिछड़ों का संरक्षण, जन वितरण प्रणाली आदि ।
पंचायती राज के आलोचकों की दृष्टि में इस व्यवस्था से केन्द्र के कमजोर होने, एकता की प्रवृत्ति का हास, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा में बाधा तथा स्थानीय स्तर पर प्रशासकों एवं निर्वाचित प्रतिनिधियों के मध्य टकराव आदि की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
किन्तु दीर्घकाल में ये आशंकाएँ निर्मूल ही सिद्ध होगी और एक ऐसी सामाजिक- राजनीतिक व्यवस्था विकसित होगी जिसमें सभी वर्गों के हित सुरक्षित होंगे और सभी की उन्नति होगी।
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