Kuku FM जैसी हिंदी कहानी | “मकान नंबर 27: जो गया, लौट कर नहीं आया”
📖 अध्याय 1: आधी रात की कॉल
रवि की जिंदगी एकदम सामान्य चल रही थी। पटना की हलचल भरी गलियों में एक प्राइवेट ऑफिस में काम करता था। लेकिन सब कुछ बदल गया उस रात—जब उसे एक अजीब सा कॉल आया।
🕒 रात के 2:13 बजे।
फोन की स्क्रीन चमकी—"अननोन नंबर"
रवि ने हिचकिचाते हुए कॉल उठाया।
"अगर तेरी हिम्मत है तो मकान नंबर 27 में सुबह होने से पहले कदम रख। वरना अर्जुन को भूल जा।"
फोन कट गया।
रवि चौंक गया। अर्जुन? उसका बचपन का दोस्त?
उसने फौरन अर्जुन को कॉल किया—फोन स्विच ऑफ।
मन में डर की लहर दौड़ गई।
कुछ तो गड़बड़ थी।
📖 अध्याय 2: दोस्ती की कसम
रवि और अर्जुन की दोस्ती बचपन से थी। दोनों ने न जाने कितनी मस्ती की थी—छत पर पतंगबाज़ी, गंगा किनारे चाय की चुस्कियाँ, और स्कूल की लड़ाइयाँ।
लेकिन पिछले कुछ महीनों से अर्जुन अजीब हरकतें करने लगा था। वो अकेले में बातें करता, रात को घर नहीं लौटता, और सबसे बड़ी बात—वो बार-बार “मकान नंबर 27” का ज़िक्र करता।
एक दिन उसने रवि से कहा था:
"मकान नंबर 27 में कुछ है रवि… जो मुझे बुला रहा है।"
रवि ने उसे हंसी में टाल दिया।
अब उसी मकान का कॉल आया था।
📖 अध्याय 3: मकान की परछाई
पटना के बाहरी इलाके में एक पुराना इलाका था—"आज़ाद नगर"। वहाँ मकान नंबर 27 सालों से वीरान पड़ा था। कहते हैं वहाँ 5 साल पहले एक पूरा परिवार जिंदा जल गया था।
रवि को रास्ता याद नहीं था, लेकिन अर्जुन के नोटबुक में एक स्केच मिला—एक मानचित्र जैसा, जिसमें मकान तक पहुँचने का तरीका था।
रात के 3 बजे रवि उस रास्ते पर निकल पड़ा।
हर मोड़ पर उसे ऐसा लग रहा था जैसे कोई उसकी निगरानी कर रहा हो।
📖 अध्याय 4: अंदर की दुनिया
मकान नंबर 27 के पास पहुँचते ही रवि की सांसें तेज़ हो गईं। मकान पुराना था, दीवारें टूटी हुईं, खिड़कियाँ जंग खाईं।
लेकिन दरवाज़ा खुला था।
रवि ने कदम रखा। मकड़ी के जाले, धूल और घुप्प अंधेरा।
तभी उसे एक हल्की सी आवाज़ सुनाई दी…
“रविविविवि….”
रवि ठिठक गया। वह अर्जुन की आवाज़ थी।
वो आवाज़ अंदर से आ रही थी। पर कैसे?
📖 अध्याय 5: समय से परे
मकान के अंदर उसे एक कमरा मिला, जिसमें दीवार पर घड़ी टंगी थी—और उसमें समय उल्टा चल रहा था।
कमरे में एक रिकॉर्डर पड़ा था, जिसमें अर्जुन की आवाज़ रिकॉर्ड थी:
“अगर मैं वापस न आऊँ… तो रवि को बता देना कि मकान जिंदा है…”
रवि की रीढ़ में सिहरन दौड़ गई।
क्या मकान जिंदा है? और अर्जुन कहाँ है?
📖 अध्याय 6: दरवाज़ों की भूलभुलैया
मकान अब बदल रहा था। हर कमरा नए कमरे में बदलता जा रहा था। जैसे मकान खुद उसे अंदर फँसाना चाहता हो।
हर दरवाज़ा खुलता—तो पीछे का दरवाज़ा गायब हो जाता।
रवि अब डरने लगा था। उसकी घड़ी की सुइयाँ घूमना बंद हो गई थीं।
तभी दीवार पर अर्जुन का लिखा मिला:
"तू नहीं समझेगा... हम दोनों एक ही हैं।"
क्या मतलब था इसका?
📖 अध्याय 7: परछाईयों का हमला
अचानक कमरे में धुआं भरने लगा। परछाईयाँ दीवारों से निकलने लगीं।
रवि ने देखा—हर परछाई उसका ही चेहरा लिए हुए थी।
तभी एक परछाई ने कहा:
“अर्जुन तू ही है... तू खुद को क्यों ढूंढ रहा है?”
रवि ने ज़ोर से चीखा—“नहीं! मैं रवि हूँ! अर्जुन मेरा दोस्त था!”
लेकिन मकान हँस रहा था। जैसे सब कुछ उसकी प्लानिंग का हिस्सा हो।
📖 अध्याय 8: झूठ और सच्चाई का फर्क
रवि को याद आया—3 साल पहले अर्जुन की एक्सीडेंट में मौत हो गई थी।
तो फिर ये सब क्या है?
क्या रवि ने कभी अर्जुन को खोया ही नहीं?
या फिर अर्जुन कभी था ही नहीं?
मकान नंबर 27 दरअसल उसकी खुद की बनाई हुई दुनिया थी—एक भ्रम, जहाँ वह खुद को खोज रहा था।
📖 अध्याय 9: मन का मकान
मनोचिकित्सक की फाइल में दर्ज था—"रवि डिसोसिएटिव आइडेंटिटी डिसऑर्डर से ग्रसित है। उसने एक काल्पनिक मित्र ‘अर्जुन’ बना लिया था।”
मकान नंबर 27—उसका मन था।
हर कमरा उसकी यादें, डर और भ्रम थे।
वो खुद से भाग रहा था, खुद को ढूंढ रहा था।
📖 अध्याय 10: अंत… या नई शुरुआत?
आज भी रवि अस्पताल में है।
वो हर नए आदमी से कहता है—“तुम अर्जुन को जानते हो? वो मकान नंबर 27 में है… मैं उसे लाने गया था…”
कोई उसे सुनता नहीं।
लेकिन हर रात जब घड़ी 2:13 बजाती है… उसकी आँखें चमक उठती हैं।
और वो कहता है—“फिर से जाना है… इस बार मैं उसे लाकर रहूंगा।”
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